ज्योतिष और रोग के सिद्धांत :-
ज्योतिष विज्ञों द्वारा किए जाने रोगों से संबंधित भविष्यवाणी में सटीकता कैसे देखी जाती हैं । ये एक रोचक विषय हैं । कई ज्योतिष विज्ञों द्वारा संभावित रोगों की सटीकता के साथ की जाने वाली भविष्यवाणी वास्तव में उस रोग की पुष्टि करता हैं । किन्तु , आधुनिक काल खंड में इसे कई महानुभावों द्वारा इसका खंडन किया जा सकता हैं । वास्तव में खंडन करने वाले व्यक्तियो द्वारा न ही ज्योतिष के सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता हैं और न ही ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों को वे जानते हैं । तो आइए इसी सिद्धांतों के बारें में एक अल्प चर्चा आज आप सभी विद्वत जनों के समक्ष करते हैं ।
ज्योतिष में संबंधित सभी ग्रह प्रकृति में मौजूद तत्वों के परिचायक हैं । इसी तत्वों के आहार और विहार के पारिणामिक स्वरूप के प्रभाव को स्थापित ये ग्रह करते हैं । ज्योतिषविज्ञ ग्रहों के माध्यम से उससे संबंधित प्रकृति में मौजूद तत्व व तत्वों के क्रियात्मक प्रभाव अर्थात स्वभाव गुण दोष रूप रंग क्रिया प्रतिक्रिया के अनुसार उत्पन्न होने वाले गुण दोष के प्रभाव को जानकार के व्यक्ति को होने वाले संभावित रोग को बताते हैं । सच तो ये हैं की ये एक विशेष विज्ञानिक सिद्धांत हैं । जैसे की आपका नाम आपके परिचय का कारण बनते हैं । ठीक उसी प्रकार ज्योतिषीय नवग्रह प्रकृति में मौजूद ग्रहों के गुण व दोष का परिचायक बनते हैं ।
वैदिक ज्योतिष वेद की भाँति तत्वों के सिद्धांत पर आधारित विज्ञान हैं । जिसके गुण आकार प्रकार रंग रूप गंध क्रिया प्रतिक्रिया के आधार पर मापतौल करके ज्योतिषीय स्वरूप के माध्यम से हमारे और आपके समक्ष परोसा गया सिद्धांत हैं ।
उदाहरणार्थ :-
जैसे की सूर्य के तत्वों को हम यहाँ पर उदाहरण स्वरूप लेते हैं । सूर्य वास्तव में प्रकाश के श्रोत्र हैं ऊर्जा और ताप के श्रोत्र हैं व पित्त प्रधान रोग के सूचक हैं । चुकी सूर्य उपरोक्त संबंधित तत्व कारक होने के कारण उपरोक्त तत्व पर विशेष रूप से प्रभावशील हैं । जिस प्रकार गंदे स्थान पर व गंदे व्यक्तित्व वाले व्यक्तियो के संपर्क में आने पर व गंदे क्रियात्मक स्वरूप को निर्धारण करने वाले व्यक्तियो के संपर्क में आने पर एक अच्छे व्यक्तियो का भी क्रियात्मक पहल में गंदगी कही न कही देखने को प्राप्त हो जाति हैं । ठीक उसी प्रकार से कही न कही सूर्य ज्योतिषीय ग्रह यदि काल चक्र में कही न कही स्थान से कर्म से व संगति से पीड़ित अवस्था में हो तो सूर्य से संबंधित तत्वों जो सृष्टि के हर एक जीव के अंदर मौजूद हैं उसे उस तत्व से संबंधित परेशानियों का सामना करना पर सकता हैं । जैसे की सूर्य प्रकाश के कारक हैं और हमारे भौतिक काया में नेत्र प्रकाश के कारक हैं । उपरोक्त दर्शित सूर्य ग्रह की स्तिथि यदि प्रभावित हो तो उसका असर हमारे नेत्र पर विशेष रूप से प्रभावी होता हैं । अर्थात हमारे प्रकाश से संबंधित रोग होने की संभावना हो जाती हैं किन्तु माध्यम नेत्र होगा तो नेत्र पर इसका असर देखने को जातक को प्राप्त हो सकता हैं ।
चंद्रमा जल तत्व पर विशेष रूप से प्रभाव रखते हैं , और हृदय की भावनाएं जल के गुणों के निर्धारित स्वरूप अनुसार निरंतर बहते रहने वाली होती हैं और कफ प्रधान रोग के कारक हैं । यदि उपरोक्त स्तिथि अनुसार सूर्य के संदर्भ में हो तो तत्व सिद्धांत अनुसार अग्नि और जल दोनों एक दूसरे के लिए अहितकारी माने गए हैं उपरोक्त स्थिति हृदय व नेत्र से संबंधित पीड़ा को व्यक्त कर सकती हैं । उपरोक्त कथन सिर्फ और सिर्फ समझाने हेतु किया गया प्रयास हैं । जिसे आप अपने जन्म कुंडली में लागू करके निर्धारित कर सकते हैं । किन्तु , इससे संबंधित ज्योतिषीय सूत्र ज्ञातव्य हेतु संपर्क करें ताकि आने वाले समय मे संभावित रोग को जानकार उसके उपचार हेतु प्रयास किया जा सके । आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ।।
ज्योतिष विज्ञ :- आर के मिश्र
संपर्क सूत्र :- ६२०२१९९६८१
web:- https://bhagalpurastrology.com
( BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTRE )
Rajprit
October 2, 2024 at 4:14 am
Acha laga padh Kar jankari ke liye aapka bahoot 2 dhanyawad
Mr. R. K. Mishra
October 2, 2024 at 4:24 am
बहुत बहुत धन्यवाद आपने अपना कीमती समय का उपयोग इस पोस्ट को पढ़ने हेतु किया । bahgalpur astrology & research centre आपको अपना कीमती समय देने हेतु तहे दिल से सौ सौ आभार व्यक्त करता हैं ।