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हस्तरेखा से जाने मनोविकार के कारण ।।

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हस्तरेखा से जाने मनोविकार के कारण ।।

BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTER BHAGALPUR Astrologer :- MR.  R.K. Mishra   Contact number :-  6202199681 An Indian gov. registered astrology center in Bhagalpur silk city. MSME registration num :- UDYAM-BR-07-0021025

हस्तरेखा से जाने मनोविकार के कारण :-

ज्योतिषविज्ञ आर के मिश्र जी की निज ज्योतिषीय व विज्ञानिक शोध पर आधारित ।।

हस्तरेखा से मनोविकार के बारे में जानने से पूर्व मनोविकार के बारे में समझना बेहद ही आवश्यक हैं । तो प्रश्न ये हैं की मनोविकार आखिर हैं क्या ?

प्रश्नोत्तरी :-   मनोविकार के एक ही प्रमुख कारण हैं और वो हैं भावनात्मक अस्थिरता जब भी भावनात्मक अस्थिरता होंगी मनोविकार होगा । इसका मुख्य रूप से हृदय के भाव से संबंध होता हैं किन्तु प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता हैं । क्रियात्मक रूप से हृदय के भाव इसमें प्रमुख तौर पर प्रभावशील होते हैं । किन्तु , इसका प्रभाव मस्तिष्क पर विशेष रूप से पड़ता हैं । हृदयात्मक प्रभाव जब मस्तिष्क को प्रभावित करें वो मनोविकार रूपी तथ्य के कारक बन जाते हैं अन्यथा मस्तिष्क में इतनी सामर्थ्यता नहीं की वो मनोविकार को जन्म दे सके जब तक हृदय प्रभावित न हो । ज्योतिषीय आधार विंदु और विज्ञानिक आधार विंदु दोनों स्तर पर इसकी पुष्टि होती हैं ।

                                              उपरोक्त दर्शित बातें विज्ञानिक सिद्धांत से परिलक्षित हैं । किन्तु , मूल बातें की पुष्टि यदि की जाएँ तो उसमे कमी भी दिखती हैं । तत्पश्चात एक बात तो सत्य हैं यदि विज्ञानिक सिद्धांत को आधार यदि बना लिया जाए तो ज्योतिष के सिद्धांत को समझने में काफी  हद तक सहायक सिद्ध होता हैं । मूल रूप से मैंने ज्योतिष के जितने भी सिद्धांतों की बारीकी से अध्ययन किया हैं उसमे ज्योतिष के सभी सिद्धांत विज्ञानिक सिद्धांत से कभी भी अलग नहीं दिखती ।  ज्योतिष शास्त्र के मत से हृदय के भाव और मस्तिष्क के विचार दोनों अलग अलग विषय वस्तु हैं जिसमे अपनी अपनी प्रमुखता हैं एक का मस्तिष्क पर तो दूसरे के हृदय पर विशेष प्रभाव होता हैं । किन्तु एक दूसरे के बिना ये अधूरे भी हैं , जिस प्रकार की हृदय और मस्तिष्क एक दूसरे के पति व पत्नी हो ।

ज्योतिष सिद्धांत १.

हस्तरेखा सिद्धांत के मत से हृदय रेखा , मस्तिष्क रेखा ,  चंद्र रेखा व चंद्र पर्वत का मन की इक्षाओ पर विशेष प्रभाव देखने को मिलता हैं किन्तु , अन्य मत के अनुसार हृदय पर सूर्य पर्वत व सूर्य रेखा का भी विशेष महत्व हैं । जिससे मनोविकार का अध्ययन सूक्ष्म रूप से किया जाता हैं । सूर्य रेखा व सूर्य पर्वत का विशेष स्थिति में अध्ययन किया जाता हैं ।

हृदय रेखा मूलतः भावनात्मक स्वरूप को दिशा निर्दिष्ट करने वाली रेखा हैं ये मूल-रूप से आत्मबल साहस धैर्य व स्थिरता को भावनात्मक स्तर से व्यक्त करने वाली रेखा हैं जिससे व्यक्ति की आत्मिक क्षमता का पता चल जाता हैं । मैंने अनुभव किया हैं की जहाँ पर व्यक्तिगत इक्षाएँ जागृत होती हैं वहाँ पर आंतरिक स्तर से भाव अपना स्थान ग्रहण कर लेता हैं । अर्थात एक प्रकार से इक्षाओ का प्रतिनिधित्व हृदय रेखा करता हैं । वैसे तो इक्षाओ का प्रतिनिधित्व हस्तरेखा विज्ञान में कई स्तर से  देखा जाता हैं । किन्तु एक मूल तत्व रूपी अधिष्ठित हस्तरेखा के रूप में हृदय रेखा को आप समझ सकते हैं ।

सिद्धांत १ के अनुसार सामान्य सा प्राकृतिक सिद्धांत हैं किसी भी प्रकार से यदि भावनात्मक अस्थिरता यदि देखने को मिलती हैं वो मनोविकार का कारण बन जाता हैं । ये भावनात्मक अस्थिरता ही मनोविकार हैं जिसे विज्ञान मानता हैं ।

हृदय रेखा कई भाग में टूटी हुई हो , या हृदय रेखा पर गड्ढे हो , या हृदय रेखा पर द्वीप बनी हुई हो , या हृदय रेखा पर क्रॉस का निशान हो , या हृदय रेखा पर काले व लाल रंग के तिल हो तो समान्यतः ज्योतिषीय सूत्रों के अनुसार व्यक्ति के सोच को बुरी तरह प्रभावित करती हैं जिससे मनोविकार की उत्पत्ति होती हैं ।

ज्योतिष सिद्धांत २.

दूसरा मस्तिष्क रेखा की सबसे अहम भूमिका मनोविकार प्रदान करने में होती हैं चुकी , मस्तिष्क रेखा व्यक्ति के सोच चिंतन चिंता विचार इत्यादि जैसे स्वाभाविक तत्व पर अपना प्रभाव स्थापित करता हैं । वैसे तो उपरोक्त कारक तत्व भावनात्मक स्तर पर भी सक्रिय हैं । जिसके कारक रेखा हृदय रेखा हैं । मस्तिष्क रेखा का दूसरा नाम मातृ रेखा हैं और तीसरा नाम मंगल रेखा भी हैं । अलग अलग ज्योतिषियों के मतानुसार अलग अलग नाम इस रेखा का हैं । जिसके बारे में मेरी विचार धारा के अनुसार तथ्यपूर्ण व तर्कपूर्ण स्तिथि से सत्य हैं ।

यदि मस्तिष्क रेखा की स्तिथि ऊपर निर्दिष्ट हृदय रेखा के स्तिथि अनुसार यदि स्तिथि बनती हैं तो व्यक्ति को मानसिक तौर पर मनोविकार की स्तिथि से जूझना पड़ता हैं । तत्पश्चात यदि मस्तिष्क रेखा यदि शुरुआती स्थान से या मध्य स्थान से दो भागों में v आकार में लिये हुए हो और एक रेखा चंद्र पर्वत की और हो और दूसरा निम्न मंगल के क्षेत्र से संबंधित हो तो रेखाओ की ऐसी स्तिथि व्यक्ति के स्वभाव में अस्थिरता को प्रदान करने वाली होंगी । क्योंकि ऐसी स्तिथि मानसिक तौर पर भ्रम की स्तिथि को उत्पन्न करेगा ।  क्योंकि एक सोच व्यक्ति की ये होंगी की वो अपने सामर्थ्य से सभी कुछ प्राप्त करें और साथ ही साथ बहुत ज्यादा सोचने और विचार करने की प्रवृति काल्पनिक तौर पर स्वाभाविक स्तर से प्रयुक्त होगा । जिससे भ्रम की स्तिथि उत्पन्न होंगी और विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार भ्रम की स्तिथि कैसी भी हो मनोविकार ही कहलाता हैं । मस्तिष्क रेखा को यदि कई भागों में राहू रेखा के द्वारा काटा जा रहा हो तो मनोविकार को जन्म देने वाला होगा । किन्तु ध्येय वाली बात ऐसे व्यक्तियो में ये होंगी की व्यक्ति मानसिक तौर पर बेहद ही गंभीर रूप से परेशान रहने वाला होगा । एक तो राहू भ्रम रोग के कारक ग्रह हैं दूसरा मस्तिष्क रेखा को यदि राहू रेखा प्रभावित करें तो मनोविकार उत्पन्न होना स्वाभाविक ही हैं ।

ज्योतिष सिद्धांत ३.

चंद्र पर्वत व चंद्र रेखा ।।

ज्योतिष विज्ञान में चंद्रमा और चंद्र रेखा व चंद्र पर्वत को हृदय का कारक माना गया हैं । अधिस्थित देवी जगत जननी का स्थान हैं अर्थात सृजनकर्त्री जगदंबा का स्थान हैं । भाव प्रेम सौहार्द का स्थान हस्त रेखा में चंद्र पर्वत का हैं । साथ ही साथ विज्ञानिक आधार विंदु पर यदि देखा और समझा जाएँ तो चंद्रमा जल तत्व का कारक हैं । बहाव का कारक हैं चाहे रक्त के बहाव की बातें हो या फिर जल से संबंधित अन्य सभी तत्व का । चुकी चंद्रमा बहाव का कारक हैं इसी करण मन के बहाव का भी कारक चंद्रमा  बन जाता हैं । मैंने पूर्व में ही स्पष्ट कर दिया की चंद्रमा का प्रभाव हृदय पर हैं जिस करण हृदय के ऊपर प्रभाव डालने वाले भाव पर चंद्रमा का प्रभाव हो जाता हैं । चुकी मन के भाव जल के गुण को धारण किए हुए हैं । जिससे जल के समान ही समस्त जीव के मन के भाव निरंतर बहाव रूपी क्रिया से प्रभावित हैं । जिस करण सृष्टि के हर एक जीव का मनोभाव निरंतर चलित भाव में क्रियाशील हैं । चुकी मनोविकार का करण मन के भाव की अस्थिरता ही हैं । भावनात्मक स्तर से जब मन कुप्रभावित होता हैं तो मनोविकार की स्तिथि उत्पन्न हो जाती हैं । चुकी मन का स्वभाव व गुण जल के बहाव से प्रभावित हैं । और विज्ञानिक आधार विंदु पर स्पष्ट की जाए तो इसका सीधा प्रभाव हमारे मस्तिष्क के सोचने व समझने के ऊपर सीधे तौर पर पड़ता हैं ।

फलित सूत्र

  • यदि हृदय रेखा में द्वीप हो व मस्तिष्क रेखा में द्वीप हो और चंद्र पर्वत पर गुना का प्रतीक चिन्ह हो तो मनोविकार संभव हैं ।
  • यदि चंद्र पर्वत से चंद्र रेखा राहू पर्वत तक जाकर खत्म होती हो और और राहू पर्वत धँसी हुई हो हृदय रेखा पीड़ित अवस्था में हो व मस्तिष्क रेखा को कई राहू रेखा काटती हो तो मनोविकार संभव हैं ।
  • चंद्र पर्वत पर तिल हो या फिर चंद्र पर्वत से कोई रेखा निम्न मंगल क्षेत्र तक गई हो तो व्यक्ति का स्वभाव काफी उत्तेजक हो जाता हैं जिस करण मनोविकार होना संभव हैं । 
  • चंद्र पर्वत पर तारे का चिन्ह काफी प्रसिद्धि देता हैं किन्तु सूर्य पर्वत व हथेली में सूर्य रेखा कुप्रभावित हो तो हृदय रेखा की स्तिथि अच्छी न हो तो व्यक्ति भ्रम का शिकार आंतरिक तौर पर हो सकता हैं । आंतरिक स्तर पर भ्रम की स्तिथि भी मनोविकार के गुण को परिलक्षित करती हैं ।
  • मस्तिष्क रेखा छोटी हो व राहू रेखा से प्रभावित हो या फिर मस्तिष्क रेखा दो भाग में बँटी हुई हो साथ ही साथ चंद्र पर्वत कुप्रभावित हो तो व्यक्ति चाहे कितना भी विद्वता हंसिल क्यों न कर लें व्यक्ति भ्रमित होकर अपने सोचने व समझने की सामर्थ्य को खो देता हैं ।
  • चंद्र पर्वत से शुक्र पर्वत की और जाने वाली रेखाएं कामसूत्र को परिलक्षित करती हैं । यदि इस रेखा के हृदय रेखा कुप्रभावित हो मस्तिष्क रेखा छिन वि छिन्न हो या साथ ही गुरु पर्वत की स्तिथि कुप्रभावित हो तो व्यक्ति को मनोविकार होने की संभावना बन जाती हैं । क्योंकि ऐसे व्यक्ति में चाहे स्त्री हो या पुरुष कामुकता की पूर्ति न होने पर मानसिक स्तर पर मनोविकार से ग्रसित हो जाता हैं ।
  • हृदय रेखा पर तिल हो या गुना का चिन्ह हो व साथ ही मस्तिष्क रेखा राहू रेखा के प्रभाव में हो या फिर मस्तिष्क रेखा चंद्रपर्वत व केतु पर्वत की और जाती हुई हो और साथ ही साथ जीवन रेखा को कई छोटी छोटी रेखाए काटती हो तो मनोविकार होना संभव हैं ।

ये कुछ विशेष सूत्र जो हस्तरेखा के पुस्तकों में सामान्यतया देखने को नहीं मिलती आप सभी के समक्ष प्रस्तुत  हैं । इसके अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के सूत्र हैं जिसके बारें में फिर कभी किसी और लेख में करूँगा  तब तक के लिए अपनी वाणी को विराम ।

जय गुरुदेव जय महाकाल आनंदेश्वर नाथ माहादेव आप सभी के मनोविकार को दूर करे इस प्रार्थना के साथ अपनी तुक्ष वाणी को विराम ।।

ज्योतिषविज्ञ :- आर के मिश्र ।। 

संपर्क सूत्र :- 6202199681

BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTER BHAGALPUR 01

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