Spritual Source of Prediction. ( भविष्यवाणी का आध्यात्मिक स्रोत। )
भविष्यवाणी का आध्यात्मिक श्रोत्र :- मूल रूप से आध्यात्मिक श्रोत्र से भविष्यवाणी करने के प्रमुख तौर पर तीन माध्यम हैं , जिससे आप सभी भलीभाँति परिचित हैं । प्रथम :- तंत्र द्वितीय :- मंत्र तृतीय :- यंत्र ज्योतिषीय क्रिया में यंत्र बेहद ही प्रचलित हैं । जन्मकुंडली विश्लेषण या जन्मकुंडली निर्माण संबंधित कार्य यंत्र क्रिया से परि-लक्षित हैं । जब भी किसी शिशु या जातक की जन्मकुंडली का निर्माण किया जाता हैं तो निर्माण संबंधित कार्य यंत्र के माध्यम से ही संभव हैं । आपकी कुंडली अपने आप में यंत्र ही हैं । जिसमे गणितीय सूत्र होरा का सिद्धांत का व संहिता का विशेष प्रभाव हैं ।
प्रकृति में दो अवस्थाएं प्रचिलित हैं । एक भौतिक व दूसरा अभौतिक स्तर से व्याप्त हैं । हर एक क्रिया अपने अभौतिक स्वरूप से परिलक्षित हैं । मंत्र मूलतः , क्रिया सिद्धांत से परिलक्षित हैं जिसमे नियम व संयम का विशेष प्रभाव हैं । जिस प्रकार गणित के किसी क्रिया के पारिणामिक स्वरूप को ज्ञात करने हेतु सूत्रों का विशेष महत्व हैं । ठीक उसी प्रकार सूत्र के प्रतिरूप का एक निश्चित क्रियात्मक पहल ज्योतिषीय कार्य हेतु सिद्धांत हैं । सिद्धांत का अभिप्राय क्रियात्मक दृष्टि कोण से सूत्र ही हैं । जो की विज्ञानिक दृष्टिकोण से सटीक परिचय का श्रोत्र बनता हैं । इसी सिद्धांत रूपी प्रभाव का आध्यात्मिक स्वरूप मंत्र क्रिया हैं।
तीसरा हैं तंत्र मार्ग जो की बेहद ही रोचक विषय वस्तु अपने आप में समेटे हुए हैं । तंत्र मार्ग संसाधनों व स्तिथियों के अनुसार क्रियाशील हैं । इसके क्रियात्मक परिणाम हेतु किसी यंत्र व मंत्र की आवश्यकता विशेष तौर पर नहीं होती । ये हर एक स्तिथि व मौजूद संसाधनों का उपयोग तांत्रिक क्रिया हेतु किया गया हैं । जितनी भी तांत्रिक क्रियाओं के बारे में मैंने अध्ययन किया उसमे से सभी का संबंध शिव-तंत्र विधान से ही परि-लक्षित पाया हैं । मूलतः शिव तंत्र विधान योग से परि-लक्षित सिद्धांत हैं । वास्तव में यौगिक क्रिया-ओ द्वारा परि-लक्षित सिद्धांत ही तंत्र मार्ग का मूल स्वरूप हैं । अन्य सिद्धांत तंत्र के मार्ग से परि-लक्षित नहीं हैं। तंत्र मार्ग हेतु योग ही मूल तत्व का पारिणामिक स्वरूप हैं । वास्तव में तात्विक क्रिया तंत्र से परि-लक्षित नहीं हैं । वास्तव में यौगिक क्रिया ही शिव-तंत्र संहिता के माध्यम से परिचय का कारक बनता हैं । मेरी तुक्ष अनुभूति में भी यौगिक क्रिया-ओ द्वारा ज्ञात पारिणामिक स्वरूप ही तंत्र मार्ग हैं । यही तंत्र मार्ग भविष्यवाणी का आध्यात्मिक स्रोत बनता हैं । यौगिक सिद्धि (परिणाम ) हेतु इंद्रियों का विशेष महत्व हैं । जिसमे नयन (आँख ) के दृष्टि का , हृदय के भाव का नासिका के श्वसन ( साँस ) का कर्ण अर्थात कान के श्रवण का व त्वचा के स्पंदन का विशेष प्रभाव व महत्व हैं । शिव तंत्र मार्ग से इन्ही तथ्यों पर पूर्ण बल दिया गया हैं । कोई भी मंत्र एक सूत्र हैं किन्तु योग पर किसी विशेष मंत्र रूपी सूत्र का प्रभाव नहीं पड़ता ! क्रियात्मक प्रभाव ही योग के स्वरूप को परिलक्षित करते हैं व प्रभावित करते हैं । योग का मूल अर्थ हैं जुड़ाव अर्थात जुड़ जाना तथ्यों के साथ अपने उपरोक्त इंद्रियों को जोड़ना ही योग का मूल परिचय हैं । कई ज्योतिषविज्ञ इस यौगिक क्रियाओं का प्रयोग भविष्यकथन हेतु यौगिक क्रिया का प्रयोग करते हैं । जिसे आप और हम Spritual Prediction. के नाम से जानते है ।।
जय गुरुदेव जय महाकाल जय आनंदेश्वर नाथ महादेव
ASTROLOGER :- MR. R.K.MISHRA
BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTER
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