विशेष रूप से सूक्ष्म विश्लेषण ज्योतिषीय विधि
जन्म कुंडली का तृतीय भाव के गुप्त रहस्य :-
कुंडली के तीसरा भाव जिसे अपोक्लीम भाव से संबोधित किया जाता हैं । अपोक्लीम ऐसा भाव जो जीवन के उतरार्द्ध में फलित होने वाले भाव होते हैं । अर्थात जिनसे संबंधित ग्रह का परिणाम जीवन के वृद्धावस्था में देखने को प्राप्त हो । किन्तु , ये ज्योतिष के साधारण से लागू होने वाले नियम हैं इसी सिद्धांत को ज्योतिष के भावत भावम सिद्धांत द्वारा आज मैं आप सभी के समक्ष विश्लेषण करने जा रहा हूँ ।
वास्तव में भावत भावम सिद्धांत ज्योतिषीय सिद्धांत का प्राण वायु के समान हैं । जिसके आधार पर जन्म कुंडली के तृतीय भाव को समझने की चेष्टा करते हैं । यदि जन्म कुंडली के तृतीय भाव को देखा जाए तो लग्न से तृतीय होने से ये लग्न व लग्नेश का बल किन्तु साथ ही साथ ये षष्ठम भाव से दशम व अष्टम भाव से अष्टम होता हैं । वैसे तो लग्न की स्तिथि अनुसार तो तृतीय भाव बेहद ही उत्तम होता हैं किन्तु , अधिकांश समय ये बुरे परिणामों को व्यक्त करने वाला हो जाता हैं । मंगल जैसे कुरूर ग्रह यहाँ पर कारक होते हैं । राहू जैसे ग्रह यहाँ कारक हो जाते हैं शनि जैसे पापी ग्रह यहाँ पर विराजमान हो जाए तो कारक हो जाते हैं ।
मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि जिनके भी कुंडली में विशेष रूप से तृतीय भाव ऐक्टिव होता हैं उनके जीवन के उतरार्द्ध ( वृद्धावस्था ) में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं । ऐसे सकारात्मक परिणाम जिसका समय के आगोश में महत्व खत्म सा हो जाता हैं ऐसी अवस्था में परिणामों का कोई मोल उस जातक व जातिका के जीवन में नहीं होता । व्यक्तिगत तौर पर उस व्यक्ति का पूर्ण रूप से उस संसाधन को भोगने की चाहत खत्म सी हो जाती हैं । जब तक व्यक्ति सामर्थ्यवान होता हैं तब तक उसकी चाहत उस संदर्भित विषय वस्तु के प्रति इतनी उचाट अवस्था में पहुँच जाती हैं की व्यक्तिगत तौर पर कोई मोह व चाहत संदर्भित विषय व वास्तु का नहीं रहता । ऐसा परिणाम अपोक्लीम भाव से संदर्भित मामलों में देखने को व्यक्तिगत तौर पर हर उस व्यक्ति को मिलता हैं जिसके अपोक्लीम भाव तृतीय , षष्ठम , नवम , व द्वादश पूर्णरूप से सक्रिय हो ।
ज्योतिषीय सूत्र अनुसार :-
विशेष :- उपरोक्त निर्दिष्ट सूत्रों के अलावा ज्योतिष के अन्य चरणों का भी विश्लेषण करना अतिआवश्यक हैं तत्पश्चात किया गया फलादेश में समानता देखने को प्राप्त होंगी । क्योंकि दिए जा रहे ज्योतिषीय सूत्र सूक्ष्म फलित से संबंधित हैं इसीलिए अन्य चरणों से भी फलित हेतु सतर्कता बरतनी चाहिए ।
- लग्नेश का उपरोक्त निर्दिष्ट भाव में विराजमान होने से उपरोक्त परिणामों की प्राप्ति हो सकती हैं ।
किन्तु , नवम भाव को लेकर के फलादेश में भिन्नता देखने को मिलती हैं । उपरोक्त स्तिथि अनुसार फलित हेतु अन्य भावेश की भी स्तिथि देखने की आवश्यकता होती हैं । जिसे हर एक चरण पर देखने की जरूरत होंगी ।
- उपरोक्त अपोक्लीम भाव के स्वामी भावेश की अपने भाव से अपोक्लीम भाव में निर्धारित हो ।
विशेषतया जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव के संदर्भ में इस सूत्र की रचना होती दिखती हैं । चतुर्थ भाव सुख का भाव होता हैं ! उपरोक्त संबंधित सूत्र सामान्यतः सभी जानते हैं और इसी सुख से संबंधित मामलों में सूक्ष्म विश्लेषण की आवश्यकता को उपरोक्त सूत्र करता हैं ।
१. कुंडली का तीसरा भाव पराक्रम और मेहनत का भाव होता हैं । सामर्थ्यता की पुष्टि किसी के द्वारा की जाने वाली मेहनत के अनुसार ही निर्धारित की जा सकती हैं । किन्तु , यही मेहनत ऊर्जा का क्षय भी कराता हैं ।
२. उपरोक्त संबंधित तृतीय भाव से चतुर्थ भाव षष्ठम भाव होता हैं । जो जीवन के संघर्ष का भाव हैं शत्रुओ का भाव हैं , कर्जे का भाव हैं , रोग का भाव हैं । कुछ ज्योतिष मतों के अनुसार ये प्रशासनिक स्तर पर होने कारवाइयों का भाव हैं । गुलामी अर्थात नौकरी के भाव के रूप में भी इस भाव को जाना जाता हैं ।
३. उपरोक्त षष्ठम भाव का चतुर्थ और तृतीय भाव का अष्टम भाव नवम भी उसी अपोक्लीम के भाव के रूप में ज्ञातव्य हैं । अर्थात नवम भाव भी एक प्रकार का अज्ञात अवस्था बनता हैं । ज्योतिष की दृष्टि से व्यक्ति के द्वारा किया गया पराक्रम और जीवन में संघर्ष उसके भाग्य को निर्धारित करने की कुंजी हैं ।
४. तृतीय भाव अष्टम भाव का अष्टमस्थ भाव हैं जो इसे रहस्य का रहस्य बनाता हैं । साथ ही साथ ये षष्ठम भाव का दशम भाव हैं जो संघर्ष का कार्य भाव बनता हैं । वही पर तृतीय पराक्रम का व ऊर्जा के भाव का दशम भाव द्वादश व्यय भाव बनता हैं । और इसी व्यय का सुख तृतीय भाव पराक्रम सुख का भाव भी बनता हैं ।
५. उपरोक्त संबंधित सूत्रों में नवम भाव इसी लिए तृतीय भाव हेतु अलग होता हैं क्योंकि संघर्ष का सुख और पराक्रम मेहनत के प्रतिविम्ब स्वरूपित तथ्य भाग्य निर्धारण का भाव नवम भाव बनता हैं ।
उपरोक्त सभी निर्दिष्ट ज्योतिषीय आधारविंदु पर जब तृतीय भाव को देखा जाता हैं तो ये बात तो निश्चित हैं की जीवन में कष्टों के स्वरूप को तृतीय भाव दर्शाता हैं । उपरोक्त संबंधित भाव कष्टों का भाव हैं किन्तु याद रखे ये कष्टों के भाव होने के साथ साथ व्यक्ति के सामर्थ्य को पूर्ण रूप से प्रयोग में लाने वाला भाव भी हैं ।
वैसे भी पीड़ाये कैसी भी हो किन्तु , वो पीड़ाये जब आपको सामर्थ्यवान की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दें उससे बेहतर क्या हो सकता हैं ? उपरोक्त ये सभी भाव पहले आपके सामर्थ्य को आजमाने वाले होते हैं तत्पश्चात परिणाम देते हैं । किन्तु , अपने अनुभव में ये भी देखने को प्राप्त होता हैं की व्यक्ति की इक्षाये ही संघर्ष करते करते खत्म हो जाती हैं । मनोवृतियों में परिवर्तन हो जाता हैं व्यक्ति को उसके जरूरत के समय पर संघर्ष के अलावा कुछ और नहीं देखने को प्राप्त होता है । ईश्वरीय सत्ता का बोध उस व्यक्ति को हो जाता हैं और उसे अपने जीवन में संघर्ष के दौरान ही पता चल जाता हैं की कोई अज्ञात शक्ति उसके किए गए मेहनत व संघर्ष का उचित परिणाम नहीं होने दें रहा हैं । कोई अज्ञात शक्ति उसके समस्त कार्य को बेहतर से बेहतर करवाने के चक्कर में उसके हर एक फल में इस प्रकार कटौती करते हैं जैसे की कोई आपके पसंदीदा तथ्य को कोई काट दें या फिर कोई तोड़ फोड़ दें या फिर किसी पसंदीदा खाने की वस्तु को कोई आपके सामने परोसकर उसे छिन लें । इक्षाये चरम पर होने के वावजूद व्यक्ति को ऐसा फल मिलता हैं जैसे की उसे लगने लगे की उसने इक्षाये की ही क्यों । जब पूर्ण रूप से व्यक्ति अपने इक्षाओ का त्याग कर देता हैं जब उसके जीवन में उन तथ्यों की कोई जरूरत नहीं होती वो प्रत्यक्ष हो जाता हैं । जीवन में संघर्ष की स्तिथि को बताने वाले भाव है । उपयुक्त फल न मिलने के कारण कई बार ऐसा होता हैं जैसे की व्यक्ति आत्म हत्या कर लें किन्तु स्तिथि ऐसी हो जाती हैं की व्यक्ति आत्महत्या के प्रयास के वावजूद बच जाता हैं और वो भी एक बड़ी गलती के रूप में उसे मानने लगता हैं ।
सिर्फ और सिर्फ एक ही उपाय हैं व्यक्ति के पास बचता हैं और वो हैं अद्यात्म की और अग्रसित होना ध्यान क्रिया , योग , मंत्र जाप , करना ही एक उत्तम उपाय हैं । अन्य कोई और उपाय नहीं शिव की भक्ति ही समर्पण के भाव को जगाती हैं ठीक उसी समर्पण के भाव हेतु निरंकार और निर्विकार शिवत्व का आराधना करना व्यक्ति को संघर्ष की स्तिथि में सहायक सिद्ध होता हैं किन्तु , संघर्ष की स्तिथि बनी रहेंगी इस बात की स्वयं में मानसिक स्तर पर पुष्टि करनी चाहिये । संघर्ष को मित्र मानकर स्तिथिजन्य क्रियात्मक पहल ही एक मात्र साधन हैं ।
किन्तु एक बात याद रखिए आपके द्वारा किए गए इस संघर्ष का फल इतना होगा की सभी दूर दूर तक के लोग बौने नजर आएंगे । आपकी ख्याति और प्रसिद्धि इतनी होंगी की वही लोग आपके दिखाए और बताएं रास्तों पर चलने की कोशिश करेंगे । ऐसे व्यक्ति पथप्रदर्शक के रूप में जाने जा सकते हैं । मोक्ष उपरांत व्यक्ति पूजनीय हो जाता हैं । भगवान श्री कृष्ण की कुंडली ऐसी ही थी । मेरे एक उपभोक्ता की कुंडली भी ऐसी ही हैं ।
एक विशेष सूत्र देने के साथ साथ अपनी लेखनी पर विराम लगाता हूँ ।
यदि लग्नेश नवम भाव को छोड़ शेष अपोक्लीम भाव में जन्म समय गोचर करें तो ऐसे व्यक्तियो को कई बार अपमान और जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ती हैं किसी का साथ नहीं रहता है । अष्टम भाव को भी इस सूत्र में सम्मिलित कर लें तो बेहतर होगा ।
नवम भाव हेतु कुछ विशेष सूत्र लागू होते हैं इसीलिए इस भाव से संबंधित अन्य जन्म तात्कालिक ग्रह स्तिथि का विश्लेषण कर लेना आवश्यक होगा ।
विश्लेषणकर्ता :-
ज्योतिषविज्ञ :- आर के मिश्र
BHAGALPUR ASTROLOGY & RESERCH CENTRE
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