BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTER
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ज्योतिषीय आधार विंदु पर चंद्र+मंगल युति का प्रभाव
मेरी अनुभूति के अनुसार चंद्र+मंगल की युति ऐसी युति हैं जिसमे व्यक्ति न तो अत्यधिक समय तक क्रोधित रह सकता हैं और न ही शांति की अनुभूति करता हैं । जिस प्रकार शरीर में रक्त के प्रभाव अनुसार व्यक्तिगत मनोभाव में परिवर्तन देखने को मिलता हैं ठीक उसी प्रकार का ज्योतिषीय आधार विंदु पर चंद्र + मंगल युति का प्रभाव देखने को मिलता हैं ।
इसके पीछे का मतांतर मेरी नीज अनुभूति से शायद प्राचीन ऋषि महर्षियों का ये रहा होगा की चंद्रमा मन का कारक हैं और जल का कारक हैं प्राकृतिक स्वभाव अनुसार दोनों में एक बात की समानता हैं की मन और जल की ऊर्जा उसके बहाव पर ही स्वाभाविक तौर पर निश्चित हैं । यदि किसी भी प्रकार से मन और जल को स्थिर करने की कोशिश की जाए तो अनुभूतिक स्तर से ठीक वही महसूस किया जाएगा जो एक पंछी पिंजरे में करता हैं । उसकी बेचैनी ठीक उसी प्रकार की कुछ समयान्तर तक रहेगी तत्पश्चात उसकी बेचैनी उसके मनोविकार के रूप में स्थित होकर हिम्मत के क्षय को परिलक्षित करेगी ।। उदाहरण स्वरूप यदि व्यक्ति के स्वरूप को समझा जाए तो एक ऐसे बालक या बालिका के स्वभाव को देखिए जो बेहद ही चंचल स्वभाव का हैं , उसके स्वभाव में बुद्धिमत्ता में किसी भी प्रकार की कोई कमी देखने को नहीं मिलती थोड़ा कटुता व बदमाशी वाला स्वभाव देखने को मिलेगा किन्तु , उसके ज्ञान की पराकाष्ठा भी देखने को मिलती हैं । ज्योतिषीय ग्रह रूपी चंद्र मंगल की युति व्यक्ति को भावनात्मक स्तर से बलवान भी बनाता हैं । जो ज्ञान रूपी प्रकाशपुंज हेतु संजीवनी बूटी के चरितार्थ को चित्रांकित करता हैं ।
ज्योतिष विज्ञ आर के मिश्र जी कहते हैं की तात्विक दृष्टि से यदि इन दोनों ज्योतिषीय ग्रहों का अवलोकन किया जाए तो उपरोक्त ग्रहों का प्रभाव ऐसा ही हैं । चाहे जन्म कुंडली से संबंधित इन ज्योतिषीय ग्रहों की युति हो या फिर हस्तरेखा से संबंधित मामलों में इनकी युति बनती हुई दिख रही हो । चंद्र मंगल की युति सफलताओ की कुंजी भी कही जाती हैं ये तात्विक विचार हैं । क्योंकि यदि चंद्र मंगल की युति हो तो व्यक्ति को हिम्मती बनाता हैं । वनस्पत तृतीय भाव में षष्ठ भाव में अष्टम भाव में एकादश भाव में व द्वादश भाव में न हो क्योंकि, यहाँ पर यदि चंद्र मंगल की युति बनती हुई दिखे तो रक्त के बहाव का भी कारण रोग व रिपु के माध्यम से बनाता हैं । उपरोक्त द्विज ग्रहों के बारे में यदि तात्विक दृष्टि कोण से विचार किया जाए तो ये रक्त के पात का कारक भी बनता हैं । मंगल जहाँ पर रक्त का कारक हैं वही चंद्रमा बहाव का कारक हैं ।
ज्योतिषीय चंद्र मंगल की युति ज्ञान रूपी प्रकाशपुंज तभी बनता हैं जब गुरु और बुध जैसे ज्योतिषीय ग्रह का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वरूप से सु-कारक सिद्ध हो ।। वैसे तो पंचम भाव शिक्षा व ज्ञान के साथ साथ सर्वमनोकामना पूर्ति के कारक भाव के रूप में ज्योतिषीय विचार धाराओ के मत से प्रभावशील हैं किन्तु , मेरी अपनी कुछ अनुभूति और मान्यताओ के अनुसार चतुर्थ भाव भी पंचम के इन विचार-धाराओ का स्वामित्व रखता हैं । मेरी खुद की ज्योतिषीय विद्या के आधारशिला पर सिर्फ पुस्तकों पर आधारित ज्ञान व विज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं होती । क्योंकि जब तक आपका भावनात्मक पहल किसी तथ्य के प्रति समर्पित न हो जाए तब तक उस तथ्य से संबंधित सुख कहाँ से प्राप्त हो ।
ज्योतिषीय विचारधाराओ के मतानुसार से भावत भावम सिद्धांत से मैंने अनुभव किया हैं की हर एक भाव का द्वादश भाव उसके भोग का बनता हैं, चाहे वो त्रिक-भाव से संबंधित ही क्यों न हो । क्योंकि भोग का उचित स्वरूप व्यय में स्थित हैं जब व्यय होता हैं तो उससे संबंधित परिणाम भोग का बनाता हैं , मूल अर्थ ये हैं की व्यय ही भोग हैं फल है परिणाम हैं । पंचम के संबंधित सुफल हेतु चतुर्थ का बलवान होना अति अनिवार्य हैं । चतुर्थ का स्वामित्व व कारक ज्योतिषीय ग्रह चंद्र हैं क्योंकि चंद्रमा हृदय के भाव हैं और चतुर्थ भाव हृदय भाव के गृह हैं । उपरोक्त मतानुसार से यदि चतुर्थ भाव या ज्योतिषीय कारक ग्रह यदि किसी भी प्रकार से पीड़ित अवस्था में हो या अकारक सिद्ध हो तो बलवान पंचम से संबंधित ग्रह ज्ञान तो प्रदान करें किन्तु , उसके परिणाम में कमी हो ऐसा ज्योतिष-विज्ञ को समझना चाहिए । क्योंकि पंचम भाव चतुर्थ भाव की वाणी हैं । वाणी का धर्म हैं की वो मुखार-विंद द्वारा प्रकट हो ऐसे कई विद्वान जनों की स्तिथि इसकी गवाह हैं । जो मूल स्वाभाविक स्वरूप में हैं तो विद्वान! किन्तु उनकी विद्वता उनके भौतिक स्वरूप में कही फलित नहीं होती । व्यक्ति द्वारा अपने ज्ञान का उचित उपभोग नहीं किया जा रहा ।
संबंधित भाव हेतु दूसरी विचार-धारा के मत से भौतिक सुख समृद्धि का कारक भाव चतुर्थ हैं और ज्योतिषीय कारक ग्रह चंद्रमा हैं । ज्योतिषीय कारक ग्रह चंद्र का आध्यात्मिक प्रभाव ये भी हैं की सुख की अनुभूति भावनात्मक समृद्धता से ही संभव हैं । आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सुख कोई भौतिक विषय वस्तु नहीं हैं ! ये आंतरिक भावनात्मक अनुभूति हैं । माध्यम भौतिक तत्व ही होते हैं किन्तु , भौतिक तत्व के साथ मानसिक विचारधारा से उत्पन्न ज्ञान के भोग से भावनात्मक पहल द्वारा निर्धारित क्रिया से सुख की प्राप्ति का इस चराचर सृष्टि में देवताओ द्वारा विधित विधान हैं ।
उपरोक्त कथन से चंद्र से संबंधित ज्योतिषीय मान्यताओ की पुष्टि होती हैं किन्तु , तात्विक दृष्टिकोण से ज्योतिषीय ग्रह मंगल उस ऊर्जा का स्वरूप हैं जिसके सामर्थ्य से हर एक तत्व जो भौतिक स्तर से व्याप्त हो या अभौतिक स्तर से , उसे प्राप्ति का सबसे बड़ा माध्यम बनता हैं । एक सिद्धांतानुसार चंद्र + मंगल आपसी समन्वय धन लक्ष्मी योग को व्यक्त करता हैं किन्तु , मेरी अनुभूतिक स्तर से चंद्र + मंगल का समन्वय अचल संपत्ति प्रदाता हैं । क्योंकि चंद्रमा और मंगल में भूमि प्राप्ति से संबंधित मामलों में समानता हैं । काल पुरुष की कुंडली के भावत भावम सिद्धान्त अनुसार लग्नेश और चतुर्थेश की युति धनलक्ष्मी योग को व्यक्त करता हैं । किन्तु उपरोक्त तथ्यों की सिद्धि हेतु चंद्रमा की शीतलता बेहद ही महत्वपूर्ण होता हैं । ज्योतिषीय ग्रह के तात्विक दृष्टिकोण से चंद्र मंगल का समन्वय आंशिक क्रोध और आंशिक शीतलता का भी कारक हैं क्योंकि ये भावनात्मक बेचैनी को बढ़ाने वाला भी ज्योतिषीय घटक के रूप में व्याप्त हैं । जिन जिन जातक व जातिकाओ के कुंडली में चंद्र मंगल की युति देखी गई हैं , उनके स्वभाव में क्षणिक रुष्टा क्षणिक तुष्टा वाला स्वभाव भी देखने को मिलता हैं । ये ग्रहों के निज स्वभाव-वश परिणाम हैं । चंद्र और मंगल की युति भावनात्मक आघात को भी व्यक्त करता हैं क्योंकि मंगल कुंडली के तृतीय भाव का स्वभावगत अधिष्ठा हैं , तृतीय भाव चतुर्थ का भोग हैं अर्थात व्यय हैं उपरोक्त स्तिथि अनुसार मंगल भाव का भोग करता हैं । किसी भी भाव का भोग उसके कष्ट का कारण बनता हैं इसे नहीं भूलना चाहिए । दूसरी स्तिथि अनुसार मंगल उग्र भाव का प्रतिनिधित्व करता हैं और चंद्रमा शीतलता का परिपूर्ण भाव का इसी कारणवश इन दोनों के समन्वय में इस प्रकार की छवि देखने को प्राप्त होती हैं । चंद्र मंगल समन्वय का वैचारिक स्वरूप रामायण के लक्ष्मण जी के स्वाभाविक स्वरूप में अध्ययन का विषय पात्र हैं ।। रावण संहिता के ज्योतिषीय प्रकरण में इस बात की भी पुष्टि होती है की चंद्र मंगल युति वाले जातक मायावी होते हैं किन्तु , मेरी अनुभूति के अनुसार ये मायावी नहीं वल्कि ये रहस्यमयी स्वभाव वाले होते हैं । तात्विक दृष्टि कोण से इनके स्वभाव में स्थिरता नहीं होती ये अपने स्वभाव को परिवर्तित करते हैं । आश्चर्य की बात ये हैं की ये परिवर्तित स्वभाव में भी अपने आप को पूर्ण रूप से सक्षम पाते हैं , व्यक्तिगत तौर पर यदि किसी व्यक्ति का स्वरूप शीतलता का प्रतिनिधित्व करता हैं तो व्यक्ति का उग्र रूप व्यक्ति का व्यक्तिगत तौर पर नाश करता हैं । किन्तु , चंद्र मंगल समन्वय से प्रभावित व्यक्ति में ऐसा देखने को नहीं मिलता ऐसा व्यक्ति दोनों स्तिथि में समानता को प्राप्त करता हैं और अपने आप को स्वतः उस स्तिथि से बाहर निकालने में सक्षम होता हैं । जिसे अन्य किसी और व्यक्ति विशेष में देखने को नहीं मिलता हैं ।
चंद्र मंगल युति होने से जातक व जातिका में ग्लानि का भाव होता हैं क्योंकि ये कभी किसी का अनिष्ट नहीं करना चाहते ऐसा कहना अनुचित होगा, इसका मूल कारण भावनात्मक अस्थिरता का हैं । ऐसे जातक व जातिकाओ को भावनात्मक सहयोग की जरूरत प्रतिक्षण होती हैं । जब-तक चंद्र का प्रभाव अपने उच्चतम स्तर पर होगा तब तक व्यक्तिगत तौर पर किसी भी प्रकार का कोई भावनात्मक आघात देखने को नहीं मिलता हैं । इस ज्योतिषीय ग्रह के समन्वय से व्यक्ति द्वि-स्वभावी बन जाता हैं । भावनात्मक अस्थिरता के कारण युद्ध-स्तर पर कार्य को करने वाले होते हैं । लक्ष्य निर्धारण करना और उस-पर अपने पूर्ण सामर्थ्य से क्रियाशील होना इनका स्वभाव हैं । निर्धारित लक्ष्य के प्राप्ति हेतु चंद्र-मंगल समन्वय अपने में संजीविनी का स्वरूप हैं । अपने शीतल-स्वरूप में बेहद ही रमणीय व उग्र स्वरूप में काल बनने का सामर्थ्य चंद्र मंगल के समन्वय में हैं । ऐसे द्वि-स्वभाव के कारण ये रहस्यमयी होते हैं । इनके मन की अस्थिरता के कारण इनका एक जगह मन का निर्धारित रहना थोड़ा कठिन होता हैं । सबसे बड़ा कार्य इनके जीवन का अपने मन को नियंत्रित कर एक निश्चित लक्ष्य पर निर्धारित करना होता हैं । यदि , किसी भी तरह ये अपने इस लक्ष्य को प्राप्त कर लें तो व्यक्ति चमत्कारी स्वरूप में इस सम्पूर्ण भौतिक जगत में व्याप्त होता हैं । ऐसे व्यक्ति स्व-निर्माता होते हैं राह भी इनकी होती हैं और मंजिल भी इनकी ही होती हैं अर्थात ये अपने ही सिद्धांतों पर अत्यधिक समय चलना पसंद करते हैं । ये दूसरों को बातों का महत्व तभी तक सरल और सुलभ रूप में व्यक्त करते हैं जब तक इनके सिद्धांतों का खंडन व्यक्त या अव्यक्त रूप में न होता हो ।।
कुछ ऐसे निम्न लिखित ज्योतिषीय योग जो चंद्र व मंगल के समन्वय से फलित होते हैं नीचे दर्शाया जा रहा हैं ।
चंद्र मंगल युति से बनने वाले दुर्योग में से एक दुर्योग मांगलिक दोष हैं जो जातक व जातिका को मांगलिक बनाता हैं । चाहे किसी भी लग्न के किसी भी भाव में क्यों न हो ये जातक व जातिका को मांगलिक बनाता हैं । ये लग्न से हो या न हो किन्तु चंद्र कुंडली से मांगलिक बनाता हैं । ऐसी स्तिथि में मंगल चंद्र कुंडली में लग्न में स्थापित हो जाएगा ज्योतिषीय सूत्र अनुसार लग्न में मंगल का विराजमान होना मांगलिक दोष को दर्शाता हैं ।
ज्योतिषीय सिद्धांत अनुसार मंगल यदि लग्न द्वादश चतुर्थ सप्तम व अष्टम भाव में चाहे लग्न कुंडली में बैठे या फिर चंद्र कुंडली में मांगलिक दोष को व्यक्त करता हैं ।।
चंद्र + मंगल समन्वय से बनने वाले राजयोग
ज्योतिषीय विशेष अनुसार यदि काल पुरुष की कुंडली मेष लग्न से संबंधित हो तो धन लक्ष्मी योग को चंद्र मंगल की युति दर्शाता हैं । किन्तु , इसके लिए ग्रहों की स्तिथि का विशेष तौर पर अवलोकन करना उचित होगा ।।
दूसरा सबसे ज्योतिषीय सिद्धांत यदि कर्क लग्न की कुंडली हो तो उपरोक्त ग्रहों की विशेष स्तिथि अनुसार व्यक्ति को कार्य में सफलता के साथ साथ शिक्षा के मामलों में सफलता देता हैं । इसके लिए उपरोक्त ग्रहों की स्तिथि को देखना उचित होगा ।।
कर्क लग्न में यदि चंद्र मंगल की युति सम-सप्तक युति लग्न व सप्तम से हो या फिर एकादश भाव में चंद्र मंगल समन्वय हो तो प्रबल राजयोग बनता हैं ।।
यदि सिंह लग्न की कुंडली हो तो उपरोक्त चंद्र + मंगल ग्रहों की युति के अनुसार रोजगार से संबंधित हेतु विदेश प्रवास योग बनाता हैं ।
मीन लग्न की कुंडली हो तो चंद्र मंगल योग धर्म का योग बनाता हैं , तथा साथ ही साथ गुरु की स्तिथि यदि सही रही तो महा-भाग्य योग का निर्माण चंद्र मंगल की युति करवाती हैं ।।
चंद्रमा मस्तिष्क के ऊर्जा का संचालन करता हैं , इसके पीछे का मूल कारण मेरी अनुभूति के अनुसार आंतरिक भावनाओ का विशेष प्रभाव हमारे मन के द्वार से मस्तिष्क पर विशेष रूप से पड़ता हैं । इसीलिए यदि मंगल की युति हो तो जातक मनोभाव से पीड़ित होता हैं । इसके पीछे का तात्पर्य सिर्फ एक ही हैं मंगल जहाँ स्थापित हो वहाँ पीड़ा हो । क्रोध भी पीड़ा का परिचायक हैं , क्रोध पीड़ा को वापसी करण का माध्यम भी बनता हैं । मंगल का प्रभाव क्रोध में प्रबल हो जाता हैं क्रोध का परिचायक मंगल हैं ।। साहस का परिचायक मंगल हैं ! किन्तु एक रहस्य बताता हूँ इसे ध्यान पूर्वक सुनने और श्रवण करने की जरूरत हैं यदि चंद्रमा किसी भी तरह से कमजोर हुआ तो मंगल का साहस और बल स्वतः खत्म हो जाता हैं । जातक व जातिका में चिड़चिड़ापन अपने प्रखर रूप में दृश्य होता हैं । मंगल के ऊर्जा हेतु चंद्रमा उस ईंधन का काम करता हैं जैसे की आपकी गाड़ी के लिए पेट्रोलियम प्रदार्थ । किन्तु इस भ्रम में न रहे की मंगल चंद्रमा के लिए कुछ करेगा मंगल चंद्र के ऊर्जा का घोतक हैं , ये ध्यान में रखने योग्य बातें हैं ।
जय गुरुदेव जय महाकाल
vicky kumar
February 25, 2024 at 3:26 pm
उपरोक्त विवरण से संबंधित किसी भी तरह की त्रुटि पाई गई हो तो आप सभी विद्वतजनों के द्वारा त्रुटि पूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालने के लिए आंतरिक हृदय से BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTER आपका अभिनंदन करता हैं ।