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प्रतिष्ठाहीन योग

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प्रतिष्ठाहीन योग

जन्म कुंडली में प्रतिष्ठाहीन योग को निर्धारित करने वाले योग

सम्पूर्ण जन्म कुंडली में एक ऐसा योग जिसके होने मात्र से व्यक्तिगत छवि पर दोषारोपण हो । मिथ्या-भाषी प्रभाव जो भ्रम और उलझन के दायरे में आने से होता हैं । ठीक ऐसे योग की चर्चा आज आप सभी के समक्ष करने जा रहे हैं । सर्वप्रथम मैं कुछ तात्विक तथ्यों पर चर्चा आप सभी के समक्ष करने जा रहा हूँ जो बेहद ही अहम हैं और इसके बिना उपरोक्त ज्योतिषीय तथ्य को समझना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हैं । प्रकृति में कई प्रकार के ज्ञात और अज्ञात तत्व हैं जिसमे से कोई तत्व किसी तत्व के सानिध्य में चला जाता हैं और एक नए तात्विक परिणाम को परिलक्षित करता हैं । उसी प्राकृतिक तत्व में से एक तत्व धुंध रूपी तत्व हैं जो अक्सर अग्नि रूपी तत्व के प्रभाव को निस्तेज कर देती हैं । सम्पूर्ण प्रकृति में धुंध ही एक ऐसा तत्व हैं जो अग्नि के प्रभाव को निस्तेज कर देता हैं । अन्य जितने भी तथ्य प्रकृति में मौजूद हैं वे सभी अग्नि के वशीभूत हैं । अग्नि द्वारा उनको अपना ग्रास बना लिया जाता हैं ।

ज्योतिष में अग्नि रूपी तत्व  ही प्राण-ऊर्जा रूपी आत्मा से संबोधित तथ्य हैं जिसका प्रतिनिधित्व ज्योतिषीय ग्रह सूर्य के आधिष्ठित हैं । ठीक उसी प्रकार धुंध अर्थात धुआँ रूपी प्राकृतिक तत्व का प्रतिनिधित्व ज्योतिषीय ग्रह राहू के आधिष्ठित हैं ।

जिस प्रकार प्रकृति में धुआँ अग्नि व अग्नि के ऊर्जा को सोख लेता हैं ठीक उसी प्रकार से राहू रूपी ज्योतिषीय ग्रह रूपी तत्व सूर्य रूपी ज्योतिषीय ग्रह के तत्व को सोख कर उसके ऊर्जा को हीन कर देता हैं । सूर्य द्वारा प्रभावित ज्योतिषीय तत्व आत्मा ,  प्रतिष्ठा , वर्चस्व ,  धार्मिक कृत्य,  सत्ता ,  सिंहासन ,  इत्यादि जैसे जितने भी ज्योतिष निर्धारित तथ्य हैं उन सभी पर राहू जैसे धुंध का , मिथ्याचरण का , भ्रम , उलझन , नकारात्मकता का प्रभाव इतना तीक्ष्ण हैं की वो सूर्य जैसे ज्योतिषीय ग्रह को ग्रास जाता हैं । जिसके फलस्वरूप उपयुक्त परिणाम पद , प्रतिष्ठा , और प्रभाव में हीनता को लाकर रख देता हैं । इसके बारे में ज्योतिषीय आधार बिन्दु पर कई प्रकार से निर्धारित किया जा सकता हैं नक्षत्र योग , राशि योग , ग्रह योग , व भाव संबंधित निर्धारित योग हैं । जिसकी विवेचना मैं यहाँ विशेष तौर पर नहीं कर रहा क्योंकि ज्योतिष एक ऐसा विषय हैं जिसके एक एक तथ्य अपने आप में अथाह समुन्द्र रूपी ब्रह्मांड की तरह हैं । जिसके बारें में मैं यहाँ पर विशेष चर्चा करने में अक्षम महसूस करता हूँ । किन्तु एक रहस्य बता देता हूँ ! ज्योतिष में लग्न व लग्नेश सूर्य और सूर्य का राजमहल होता हैं भले ही ग्रह कोई सा भी हो किन्तु स्वरूप व रंग रूप व प्रभाव सूर्य के गुणों से ही लक्षित होगा । फलित ज्योतिष हेतु सिर्फ रंग रूप व गुणों से ही लग्नेश को निर्धारित नहीं किया जा सकता बल्कि उपरोक्त निर्दिष्ट जीतने भी चरण निर्धारित ज्योतिष शास्त्र में निर्धारित हैं वे सभी फलित हेतु प्रयोग में लाए जाते हैं ।  वे सभी के सभी उपरोक्त संबंधित प्रभाव को निर्दिष्ट करते हैं । विशेष फलादेश हेतु आप सभी सप्रेम सादर आमंत्रित हैं ।

ज्योतिषविज्ञ :- आर के मिश्र

BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTRE

ADD:- Roy Bahadur Surya Prasad Road Jhawa Kothi  Near New Durga Sthan Chhoti khanjarpur Bhagalpur 812001

WEB:- https://bhagalpurastrology.com

जन्म कुंडली में प्रतिष्ठाहीन योग को निर्धारित करने वाले योग

सम्पूर्ण जन्म कुंडली में एक ऐसा योग जिसके होने मात्र से व्यक्तिगत छवि पर दोषारोपण हो । मिथ्या-भाषी प्रभाव जो भ्रम और उलझन के दायरे में आने से होता हैं । ठीक ऐसे योग की चर्चा आज आप सभी के समक्ष करने जा रहे हैं । सर्वप्रथम मैं कुछ तात्विक तथ्यों पर चर्चा आप सभी के समक्ष करने जा रहा हूँ जो बेहद ही अहम हैं और इसके बिना उपरोक्त ज्योतिषीय तथ्य को समझना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हैं । प्रकृति में कई प्रकार के ज्ञात और अज्ञात तत्व हैं जिसमे से कोई तत्व किसी तत्व के सानिध्य में चला जाता हैं और एक नए तात्विक परिणाम को परिलक्षित करता हैं । उसी प्राकृतिक तत्व में से एक तत्व धुंध रूपी तत्व हैं जो अक्सर अग्नि रूपी तत्व के प्रभाव को निस्तेज कर देती हैं । सम्पूर्ण प्रकृति में धुंध ही एक ऐसा तत्व हैं जो अग्नि के प्रभाव को निस्तेज कर देता हैं । अन्य जितने भी तथ्य प्रकृति में मौजूद हैं वे सभी अग्नि के वशीभूत हैं । अग्नि द्वारा उनको अपना ग्रास बना लिया जाता हैं ।

ज्योतिष में अग्नि रूपी तत्व  ही प्राण-ऊर्जा रूपी आत्मा से संबोधित तथ्य हैं जिसका प्रतिनिधित्व ज्योतिषीय ग्रह सूर्य के आधिष्ठित हैं । ठीक उसी प्रकार धुंध अर्थात धुआँ रूपी प्राकृतिक तत्व का प्रतिनिधित्व ज्योतिषीय ग्रह राहू के आधिष्ठित हैं ।

जिस प्रकार प्रकृति में धुआँ अग्नि व अग्नि के ऊर्जा को सोख लेता हैं ठीक उसी प्रकार से राहू रूपी ज्योतिषीय ग्रह रूपी तत्व सूर्य रूपी ज्योतिषीय ग्रह के तत्व को सोख कर उसके ऊर्जा को हीन कर देता हैं । सूर्य द्वारा प्रभावित ज्योतिषीय तत्व आत्मा ,  प्रतिष्ठा , वर्चस्व ,  धार्मिक कृत्य,  सत्ता ,  सिंहासन ,  इत्यादि जैसे जितने भी ज्योतिष निर्धारित तथ्य हैं उन सभी पर राहू जैसे धुंध का , मिथ्याचरण का , भ्रम , उलझन , नकारात्मकता का प्रभाव इतना तीक्ष्ण हैं की वो सूर्य जैसे ज्योतिषीय ग्रह को ग्रास जाता हैं । जिसके फलस्वरूप उपयुक्त परिणाम पद , प्रतिष्ठा , और प्रभाव में हीनता को लाकर रख देता हैं । इसके बारे में ज्योतिषीय आधार बिन्दु पर कई प्रकार से निर्धारित किया जा सकता हैं नक्षत्र योग , राशि योग , ग्रह योग , व भाव संबंधित निर्धारित योग हैं । जिसकी विवेचना मैं यहाँ विशेष तौर पर नहीं कर रहा क्योंकि ज्योतिष एक ऐसा विषय हैं जिसके एक एक तथ्य अपने आप में अथाह समुन्द्र रूपी ब्रह्मांड की तरह हैं । जिसके बारें में मैं यहाँ पर विशेष चर्चा करने में अक्षम महसूस करता हूँ । किन्तु एक रहस्य बता देता हूँ ! ज्योतिष में लग्न व लग्नेश सूर्य और सूर्य का राजमहल होता हैं भले ही ग्रह कोई सा भी हो किन्तु स्वरूप व रंग रूप व प्रभाव सूर्य के गुणों से ही लक्षित होगा । फलित ज्योतिष हेतु सिर्फ रंग रूप व गुणों से ही लग्नेश को निर्धारित नहीं किया जा सकता बल्कि उपरोक्त निर्दिष्ट जीतने भी चरण निर्धारित ज्योतिष शास्त्र में निर्धारित हैं वे सभी फलित हेतु प्रयोग में लाए जाते हैं ।  वे सभी के सभी उपरोक्त संबंधित प्रभाव को निर्दिष्ट करते हैं । विशेष फलादेश हेतु आप सभी सप्रेम सादर आमंत्रित हैं ।

ज्योतिषविज्ञ :- आर के मिश्र

BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTRE

ADD:- Roy Bahadur Surya Prasad Road Jhawa Kothi  Near New Durga Sthan Chhoti khanjarpur Bhagalpur 812001

WEB:- https://bhagalpurastrology.com

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