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तंत्र ज्योतिष के सिद्धांत ( इडा पिंगला और सुषुम्ना )

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तंत्र ज्योतिष के सिद्धांत ( इडा पिंगला और सुषुम्ना )

तंत्र ज्योतिष के सिद्धांत ( इडा पिंगला और सुषुम्ना )

तंत्र भी ज्योतिष का एक भाग बनता हैं । मैंने अनुभव किया हैं की प्रकृति के सिद्धांत का एक सूत्र को जब भी आत्मसात करोगे तो उससे संबंधित समस्त भाग अपने प्रभाव को दर्शाते हैं । वास्तव में ये आत्मसात के पश्चात की अनुभूति हैं जिसे आत्म-साक्षात्कार के पश्चात निश्चित तौर पर अनुभव किया जा सकता हैं । किन्तु , गुरु के मार्ग और दृष्टि का विशेष सहयोग प्राप्त होना नितांत आवश्यक हैं । तंत्र वास्तव में एक रहस्यमयी विद्या हैं किन्तु तभी तक जब तक आपके अंतःपटल पर इसका विज्ञानिक आधार विंदु का स्पष्टीकरण नहीं होता । जैसे ही इससे संबंधित विषय का निराकरण हो जाता हैं यही तंत्र विज्ञानिक आधार को ग्रहण कर लेता हैं । वाक-सिद्धि जैसे तथ्य जो हमारे और हमारे पूर्वजों द्वारा विचारणीय तथ्य के रूप में आदिकाल से ही मौजूद हैं इसमे उपरोक्त ( इडा , पिंगला , व सुषुम्ना ) से संबंधित तंत्र सिद्धांत का विशेष योगदान रहा हैं । जिसके संदर्भ में चंद शब्द अपनी अल्प वाणी से आप सभी के समक्ष रख रहा हूँ ।

इडा पिंगला और सुषुम्ना भी इसी तंत्र का एक मूल आधार हैं । जिसे यदि समझ लिया जाए तो ये ज्योतिष के सामुद्रिक विभाग के सिद्धांत में विशेष योगदान निभाता हैं । तत्पश्चात मंत्र जागृति , व मंत्र सिद्धि के क्षेत्र में संजीवनी का काम करता हैं । वैदिक तंत्र ज्योतिष के माध्यम से दिव्यदृष्टि अर्थात तीसरी आँख की जागृति हेतु विशेष तौर पर संजीवनी संज्ञार्थ हैं । उपरोक्त कथन से संबंधित प्रभाव इतना हैं की ये दिव्यता के स्वरूप को दर्शाता हैं । जिसका जादुई प्रभाव हमारे और आपके अवचेतन पटल पर विशेष रूप से प्रभावशील होता हैं । तो आइए इडा पिंगला और सुषुम्ना से संबंधित प्राथमिक ज्योतिषीय प्रभाव को समझने की चेष्टा करें ।

इडा जिसे चंद्र नाड़ी से संबोधित किया जाता हैं ।  पिंगला जिसे सूर्य नाड़ी से संबोधित किया जाता हैं । सुषुम्ना जिसे मद्य नाड़ी या भकुट जागृति से संबंधित संबोधन से संबोधित किया जाता हैं । ज्योतिष के माध्यम  से जब तक आपको तत्व सिद्धांत पर आपका प्रभाव नहीं स्थापित होता तभी तक ज्योतिष के सिद्धांत समझ में नहीं आते ।। इसी लिए आप सभी ज्योतिष के प्रियजनों व जिज्ञासुओ हेतु इतना विनम्र निवेदन हैं की प्रकृति के तत्व सिद्धांत की जानकारी आत्मिक स्तर से निश्चित कर लें तो बेहतर होगा । तंत्र तत्व सिद्धांत से विमुख नहीं हैं किन्तु , कुछ जिज्ञासुओ हेतु इसका प्रभाव तत्व पर निर्धारित नहीं होता जो सर्वथा अनुचित कथन होगा । इस संदर्भ में मेरा मानना तो ये नहीं हैं । संभवतः अन्य विद्वतजनों का भी मत मेरी इस आत्मानुभूति का खंडन नहीं करेंगी इतना तो विश्वास हैं ।

सूत्रोत्पादन रहस्य

  • हमारे भौतिक शरीर के दो भाग हैं जिसे बाम-हस्त भाग व दक्षिण-हस्त  भाग से संबोधित किया जाता हैं । बाम-हस्त भाग में शक्ति का प्रवास होता हैं तो वही दक्षिणा-हस्त भाग में शिव का प्रवास हैं । उपरोक्त संबोधन तंत्र से संबंधित हैं ।
  • इसी भौतिक शरीर के दो भाग जिसे यदि बाँटा जाएँ तो बाम-हस्त भाग को मातृ-भाग व दक्षिण-हस्त भाग को पितृ भाग से संबोधित किया जा सकता हैं । मध्य के मेरुदंड को स्व-स्वरूप के रूप में जानना चाहियें । उपरोक्त संबोधन को ज्योतिष के क्षेत्र सिद्धांत से संबंधित समझना चाहिए ।
  • नासिका मध्य ( मेरुदंड ) के बाम भाग को इडा ( चंद्र नाड़ी ) व दक्षिण भाग को पिंगला ( सूर्य नाड़ी ) से संबोधित किया जाता हैं । जब दोनों नाड़ी स्वचालित हो तो उसे सुषुम्ना ( मध्य नाड़ी ) अर्थात स्पाइनल कोड मेरुदंड से संबोधित किया जाता हैं । उपरोक्त कथन मेरे द्वारा ज्योतिष सिद्धांत के आधार विंदु पर संबोधित किया गया हैं ।

सूत्र :-

  • यदि आपके बाम-भाग के नासिका से स्वास का संचालन हो रहा हो तो इसका प्रभाव व्यक्तिगत तौर पर कल्पनाशीलता के स्वरूप को निर्धारित करता हैं । आप अनुभव करेंगे की आपकी सोचने की क्षमता में वृद्धि हुई हैं । चिंता व चिंतन के समय चंद्र नाड़ी सदैव संचालित रहती हैं । बैचेनी व परेशानी के समय में चंद्र नाड़ी का विशेष प्रभाव देखने को मिलता हैं । घुटन के समय बहुत ज्यादा परेशानी के समय या फिर विशेष उद्देश्य हेतु किया जाने वाला चिंतन व चिंता से संबंधित कार्यों हेतु , भावनात्मक गतिरोध व प्रतिरोध के समयान्तर चंद्रनाड़ी व बाम-हस्त भाग व मातृ भाग विशेष रूप से स्व-संचालित हो जाता हैं । चंचलता , व गणितीय कार्य के समय इडा नाड़ी अर्थात मातृभाग ऐक्टिव हो जाती हैं । मन पर शरीर के मातृ भाग का विशेष रूप से प्रभाव हैं । अर्थात जब भी चंद्र नाड़ी संचालित अवस्था में होता हैं व्यक्ति की कल्पनाओ को एक पंख सा मिल जाता हैं ।

विशेष सिद्धांत अनुसार यदि कुंडली में चंद्रमा किसी भी प्रकार से पीड़ित अवस्था में हो तो चंद्रनाड़ी के संचरण समयान्तर पागलपन की अनुभूति होती हैं । अर्थात इसे पागलपन के कारकत्व से भी जानना चाहिए । आपको ज्योतिषीय सिद्धांत के फलित प्रकरण में आपको चंद्रमा के कारक-तत्व व स्त्रियोचित्त गुणों से संबंधित कारक तत्वों पर निर्धारित ज्योतिषीय सूत्रों को प्रयोग में लाना चाहिए । जल तत्व रूपी तरलता के स्वरूप पर चंद्र नाड़ी मातृ भाग का विशेष प्रभाव हैं ।

पिंगला  सूर्य नाड़ी या पितृ भाग :-

  • पिंगला  सूर्य नाड़ी या पितृ भाग   स्थिरता,  सहनशीलता,  हिम्मत,  और दृष्टि चेतना के अनुभूति के समयान्तर पिंगला अपने आप संचालित होता हैं । आत्मानुभूति , आत्मबल , व आत्मा से संबंधित समस्त गुणों को पिंगला सूर्य नाड़ी अर्थात शरीर के पितृ भाग से संबंधित समझना चाहिए । अग्नि स्वरूपित ऊर्जा के स्वरूप को निर्धारित कर पिंगला के स्वरूप को समझना चाहिए । व सूर्य के संबंधित ज्योतिषीय सिद्धांत को पिंगला नाड़ी के माध्यम से फलित ज्योतिष में अपना योगदान देने चाहिए । विशेष रूप से लेख वृहद न हो इसलिए सूर्य नाड़ी अर्थात पितृ भाग के बारे में कोई विशेष फलित सिद्धांत नहीं दिया जा रहा हैं ।
  • सुषुम्ना नाड़ी या मध्य नाड़ी या रीढ़ भाग   सिद्धि , परमात्म तत्व , रहस्य शोधन , तंत्र क्रिया, मंत्र सिद्धि समाधिवस्था , व  पराविज्ञान हेतु कार्य के समयान्तर स्व-संचालित होता हैं । इसे सर्वोत्तम अवस्था माना गया हैं जिसमे इडा और पिंगला दोनों एक साथ स्व-संचालित होते हैं । आनंद की अनुभूति तो पिंगला दे देता हैं किन्तु , परमानन्द की प्राप्ति हेतु जिस अवस्था की बातें होती हैं वो सुषुम्ना के स्व-संचालन अवस्था हैं । योगियों तपस्वियों व आध्यात्मिक चेतना की जागृति समयान्तर सुषुम्ना जागृत होती हैं । जिस प्रतिक्षण रहस्य से पर्दा उठाने का कार्य अवचेतन द्वारा किया जाता हैं उस छन सुषुम्ना की जागृति होती हैं । वर्तमान में मेरी अवस्था इस समय रीढ़ भाग सुषुम्ना की जागृति का संकेत देता हैं । जिसमे सूर्य नाड़ी व चंद्र नाड़ी दोनों क्रियान्वित  हैं । ऐसी अवस्था सामान्य जनों की भी होती हैं किन्तु , इसे समझने की जरूरत हैं । यदि पंचांगानुसार तिथि नक्षत्र मुहूर्त व योग अच्छी हो और सुषुम्ना जागृत अवस्था में स्व-संचालित हो तो प्रबल सिद्ध योग को निर्धारित करता हैं । ऐसी अवस्था में जो भी कार्य जातक के द्वारा किया जाएगा वो सदैव सिद्ध ( सफल ) होगा । ऐसी मेरी अपनी अनुभूति हैं ।

उपरोक्त संदर्भ में किसी भी प्रकार का कोई विशेष सूत्रोत्पादन नहीं किया गया हैं क्योंकि एक एक नाड़ी अपने आप में बेहद वृहद हैं किन्तु , अपनी बात को मूल स्वरूप में आप सभी के समक्ष रखा हूँ । आशा करता हूँ मेरी ये छोटी सी लेख आप सभी विद्वत जनों को अच्छी लगी होंगी ।

Bhaglpur Astrology  &  Research centre

Astrologer :- Mr. R.k.mishra

Contact num :- 6202199681

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