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ज्योतिष में योग सिद्धांत

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ज्योतिष में योग सिद्धांत

BHAGALPUR ASTROLOGY & RESEARCH CENTER

ASTROLOGER :- MR. R.K. MISHRA  CON:- 6202199681

A GOV. REGISTERED ASTROLOGY CENTER IN BHAGALPUR CITY

MSME REGISTRATION NUM :- UDYAM-BR-07-0021025

योग विश्लेषण :-

प्रश्न :- जन्म कुंडली में योग क्या हैं ?

प्रश्नोत्तरी :- जन्म कुंडली में योग क्या हैं ? आइए ज्योतिषविज्ञ आर के मिश्र जी के द्वारा इसे जानने की कोशिश करते हैं । ज्योतिषविज्ञ आर के मिश्र जी कहते हैं ! जन्म कुंडली में योग का विशेष महत्व हैं । क्योंकि हमारे प्राचीन ज्योतिष आचार्यों ने योग की परिभाषा को ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांत से बेहद ही वृहद स्तर से समझाने की कोशिश की हैं । वास्तव में योग का मूल अर्थ जुड़ना होता हैं । आप इसे ऐसे समझ सकते हैं की जब दो अलग अलग प्रदार्थ आपस में जुड़ कर एक नए तत्व का निर्माण करती हैं उसके प्रभाव से उत्पन्न हुई वस्तु योग की प्रतिमूर्त रूप में जब भौतिक रूप से स्थापित होती हैं योग की परिभाषा बनती हैं । जैसे आपके माता पिता के समन्वयता का परिणाम आप हैं । जो आपके माता पिता की समन्वयता हैं वो योग की  क्रिया हैं और उस समन्वयता से उत्पन्न संतति स्वरूप में आप योग के मूल हैं । ये वास्तव में तंत्र मार्ग के सिद्धांत हैं । व्याकरण की दो वर्णों की समन्वयता से उत्पन्न शब्द योग से परिलक्षित हैं । विज्ञान की दृष्टि से दो प्रदार्थों के मध्य होने वाले समन्वयता से उत्पन्न प्रदार्थ समन्वय क्रिया से फलीभूत योग हैं । मेरी अपनी वास्तविक अनुभूतिक आधार विंदु से ज्योतिषीय योग इन तीनों स्तर पर हमारे ज्योतिष के महर्षियों द्वारा सिद्ध किया गया हैं । जिसे ध्यान पूर्वक श्रवण करने की जरूरत हैं ।

विशेष तौर पर गणितीय दृष्टि से जब दो अंक के जुड़ाव से किसी तीसरे अंक के मान प्रदर्शित होते हैं ठीक वही स्वरूप व सिद्धांत गणितीय विचारधारा से योग के स्वरूप व सिद्धांत की परिभाषा हैं ।

ज्योतिष में योग नक्षत्र आधारित सूर्य व चंद्र के स्तिथि आधारित व अन्य ग्रहों के समन्वय आधारित हैं । जिसकी विवेचना निम्न लिखित स्तर से कर रहा हूँ ।।

  • नक्षत्र आधारित योग को व्यक्तियो द्वारा रजो गुण से परिलक्षित समझना चाहिए क्योंकि ये विशेष अणु व परमाणु के समन्वय का परिचायक होता हैं ।।
  • सूर्य व चंद्र आधारित विशेष ज्योतिषीय योग को व्यक्तियो द्वारा सतो गुण से परिलक्षित समझना चाहिए क्योंकि ये विशेष तौर पर मानक व स्तिथि के अनुरूप होने वाले प्रभाव को दृश्य करता हैं ।
  • ग्रह आधारित योग को तमो गुण से परिलक्षित समझना चाहिए ।  क्योंकि, ये दो तत्व के समन्वय से उत्पन्न प्रभाव को परिदृश्य करता हैं ।  जिसकी विवेचना नीचे दर्शाये गए तीनों भाग से एक एक मूल प्रचलित योग के विश्लेषण से समझने की चेष्टा करें ।।

ज्योतिष में नक्षत्र आधारित हर एक व्यक्तियो के जीवन में एक योग होता हैं , जिसकी संख्या नक्षत्र संख्या अनुसार २७ हैं । जिसके माध्यम से हर एक व्यक्ति एक योग लेकर जन्म लेता हैं जो गुण क्षमता व स्वभाव को रजो गुण के सिद्धांत से दर्शाता हैं । वास्तव में रज का अर्थ तत्व हैं और हर एक तत्व का स्तिथि अनुसार अपना एक प्रभाव होता हैं । नक्षत्र रूपी रज के स्तिथि अनुसार प्रभाव रूपी गुण को दर्शाते हैं ।  ये विष्णु व लक्ष्मी देवी के गुण हैं । ये नैसर्गिक गुण को परिदृश्य करते हैं ।

नक्षत्र आधारित २७ योगो के नाम :-    १. विष-कुम्भ , २.  प्रीति , ३. आयुष्मान , ४. सौभाग्य ,      ५. शोभन , ६. अतिगण्ड , ७.  सुकर्मा , ८. धृति , ९. शूल ,  १०. गण्ड , ११. वृद्धि ,  १२. ध्रुव ,            १३. व्याघात ,  १४. हर्षण ,  १५. वज्र ,  १६. सिद्धि ,  १७. व्यतिपात,  १८. वारीयन , १९. परिघ ,  २०. शिव ,  २१. सिद्ध ,  २२. साध्य ,  २३. शुभ ,  २४. शुक्ल ,  २५. ब्रह्म ,  २६. इन्द्र ,                                 २७. वैधृति  हैं ।

अब सत्व गुण के सिद्धांत को परि-दृश्य करने वाले ज्योतिषीय योग के बारे में कहता हूँ ! हर एक ग्रह की स्तिथि सूर्य व चंद्र के आधार पर बनने वाले यौगिक स्वरूप के प्रभाव को दर्शाते हैं । ऐसे स्तिथि में ग्रहों के मध्य विशेष तौर पर कोई समन्वयता देखने को नहीं मिलती किन्तु , स्थान दृष्टि व ग्रहों की स्तिथि के अनुरूप जो प्रभाव फलार्पण हेतु प्राकृतिक स्तर से प्रभावित होते हैं इसे इस योग द्वारा समझना चाहिए जैसे गज-केसरी योग के सिद्धांत हो । जन्म कुंडली में चंद्र से केंद्र के भाव में यदि देव गुरु वृहस्पति हो या फिर सम-सप्तक चंद्र के साथ गुरु शुक्र व बुध की दृष्टि चंद्र पर और चंद्र की दृष्टि सम-सप्तक गुरु शुक्र व बुध पर परस्पर पड़ती हो तो चंद्र कुंडली के अनुरूप गज-केसरी नामक योग का प्रभाव होता हैं । वास्तव में तात्विक तमो गुण आधारशिला पर ऐसे योग धनलक्ष्मी व सरस्वती योग को दर्शाते हैं । किन्तु , साथ ही साथ गज-केसरी नामक योग भी शास्त्र सम्मत बन जाते हैं । जिसकी स्पष्ट व्याख्या वृहद पराशर होरा शास्त्रम में किया गया हैं । मूलतः ये ब्रह्म तत्व के अधिष्ठा ब्रह्मा व सरस्वती देवी के गुण हैं । ये सत्व रूपी स्वाभाविक गुण को परिलक्षित करते हैं ।

तीसरा तमो गुण से लक्षित हैं , जो मूलरूप से शिव व शक्ति के गुण से परिलक्षित हैं । हर एक ग्रह एक एक तत्व का प्रतिनिधित्व तत्व के गुण व स्वभाव अनुसार करते हैं । वास्तव में इनके प्रभाव भौतिक स्तर से ज्ञान व विज्ञान की प्रथम धूरी बनते हैं । जब दो तत्वों का आपस में विलय होता हैं तो निज गुण के आधार पर कुछ प्रभाव अन्य दूसरे पर डालते हैं । जिसके परिणामतः एक नए स्वरूप को तत्वों द्वारा धारण किया जाता हैं । जैसे आपके माता पिता के भौतिक समन्वयता के कारण आपका अस्तित्व इस भौतिक चराचर सृष्टि में व्याप्त हैं । मूलतः सिद्धांत एक ही हैं दो तत्वों का विलय जिस प्रकार दो वर्णों के विलय से शब्द की उत्पत्ति होती हैं । स्त्री तत्व व पुरुष तत्व के विलय से समान संतति की उत्पत्ति होती हैं । ज्योतिषीय उदाहरण स्वरूप  राहू + बुध के आपसी समन्वय से धूर्त योग बनता हैं । ये तात्विक गुण हैं , क्योंकि राहू मिथ्या हैं और बुध बुद्धि व वाणी का अधिष्ठात्र ग्रह  हैं । जब किसी भी व्यक्ति की बुद्धि और वाणी में मिथ्या रूपी तत्व का रासायनिक  विलय होगा तो निश्चय ही व्यक्ति धूर्त होगा । वाणी यदि मिथ्या के साथ हो तो छल कपट की प्रवृति व्यक्ति के स्वभाव में देखने को मिलेंगी ही । वही पर यदि चंद्रमा के साथ गुरु व बुध या इनमे से कोई एक हो तो सरस्वती योग भी बनता हैं ।  व्यक्ति ज्ञानी होगा किन्तु कपटी नहीं होगा । ये कुछ निम्नलिखित उदाहरण तमो गुण आधार पर दिया गया हैं ।

अतः उपरोक्त विवरण में किसी भी प्रकार के संशय से बचने के लिए रजोगुण ,  सतोगुण , व  तमोगुण के आधार पर ज्योतिषीय योग को समझे तो विविध ज्योतिषीय यौगिक गुण को समझने में और फलित करने में आपको किसी भी प्रकार की त्रुटि का सामना नहीं करना पड़ेगा ।।

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