ज्योतिषीय कार्य के परिपेक्ष में जन्म कुंडली विवेचन अपने आप में अद्भुत प्रभाव को स्थापित अपने शुरुआती समय से किए हुए हैं । जिसके बारे में बहुत ज्यादा बोलना जरूरी नहीं समझता । क्योंकि ज्योतिषीय कार्य हेतु सबसे अत्यधिक प्रायोगिक माध्यम जन्म कुंडली का निर्माण व उसका विश्लेषण ही हैं । वास्तव में जन्म कुंडली समय आधारित ग्रहों व नक्षत्रों के विश्लेषण का सबसे अचूक माध्यम हैं । वैसे तो ज्योतिषीय कार्यों का विशेष प्रभाव होरा , संहिता व सिद्धांत पर विशेष तौर पर निर्धारित हैं । जिसमे जन्म कुंडली में होरा का विशेष आधिपत्य हैं । जिसके अनुरूप जन्म समयानुसार ग्रहों की स्तिथि को निर्धारित किया जाता हैं । और उसके माध्यम से ग्रहों के प्रभाव को दर्शाया जाता हैं ।
ज्योतिषविज्ञ आर के मिश्र जी कहते हैं की मेरे गुरु व आराध्य काल रूपी स्वरूप में इस समस्त सृष्टि का चक्र निर्धारित किए हुए हैं । जिसके प्रमुख द्वादश अंग रूपी चक्र द्वादश भाव से विख्यात हैं । इसकी द्वादश भाव के माध्यम से जन्म कुंडली आधारित ज्योतिषीय कार्यों को किया जाता हैं , इसके अन्य अकाट्य नाम काल चक्र हैं । काल चक्र के अधिष्ठित स्वामी व देव महाकाल हैं जिनके काल स्वरूप रूपी चक्र के बंधन से सम्पूर्ण ब्रह्मांड के भौतिक व अभौतिक तत्व एवं दृश्य व अदृश्य तथ्य निर्धारित हैं ।
ज्योतिषीय कार्य हेतु इसी तत्व और तथ्य का प्रत्यक्ष स्वरूप का चित्रण नवग्रह आदित्य , सोम , भौम , बुध, वृहस्पति , शुक्र , शनि , व धूम्र ग्रह राहू व केतु द्वारा चित्रित किया जाता हैं । जिसमे सभी ग्रह रूपी काल चक्र के तत्वों का संबंध सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त तत्व व तथ्य पर दृश्य व अदृश्य रूप में अपने प्रभाव को अपने नैसर्गिक गुणों के आधार पर स्थापित किए हुए हैं । जिसके माध्यम से ज्योतिषीय कार्य हेतु इन्ही ग्रहों के स्तिथि का व काल चक्र के अंग रूपी भाव अर्थात गृह का विश्लेषण किया जाता हैं ।
कुछ निम्नलिखित उदाहरणस्वरूप ग्रह व उससे प्रभावित तत्वो व तथ्यों के नाम :-
ग्रह प्रभावित तत्व व तथ्य
आदित्य/सूर्य पिता, अग्नि, शासन, सत्ता, सिंहासन, राजा, आत्मा, वर्चस्व, राजनीति, सरकारी नौकरी
सोम /चंद्र माता, रानी, हृदय/फेफरा, भावना, सुख, अनुभूति, कोमलता, जल, मन, शालीनता
भौम/मंगल भाई, सहयोगी, सेनापति, क्रोध, क्षय, युद्ध, सिद्धांत, बल, पराक्रम, रक्त, रणनीति, भूमि
बुध बहन, बुआ, बुद्धि, लेखन, गणितीय क्रिया, राजकुमार, विद्वता, वाणी, ज्योतिष, तंत्र व मंत्र
वृहस्पति गुरु, शिक्षा, ज्ञान, धर्म, तंत्र व मंत्र, ज्योतिषीय कार्य, तीर्थाटन, धर्माधिकारी, देवोपासना
शुक्र स्त्री, कला, प्रेम, भौतिक सुख, कामुकता, यौवन, रसपान, मनोरंजन, सुंदरता, आकर्षण
शनि सेवक, आलस्य, विघ्न बाधा, दुख, एकांत, नयायाधीश, कार्य, निर्जनता, निर्धनता, रोग, स्पष्टवादी, सत्यवक्ता
राहू चोर, मिथ्या, भोगी, राजनीति, छल, काला-जादू, जादूगरी, विश्वासघात, भ्रम, दुर्बुद्धि, जुआरी
केतु धर्म ध्वजा, तंत्र मंत्र, वैध (चिकित्सक) , मोक्ष, ब्रह्मज्ञान, गुप्तकार्य, शोधकर्ता, वैराग्य, आजादी, विरक्ति
कुछ उदाहरण स्वरूप निम्नलिखित निर्धारित भाव के प्रभाव का विवरण :